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इतिहास प्रशनोत्तरी 2


1.मलिक काफ़ूर को हज़ार दीनारी कहा गया था, क्योंकि-
'मलिक काफ़ूर' मूलतः हिन्दू जाति का एक किन्नर था। उसे नुसरत ख़ाँ ने एक हज़ार दीनार में ख़रीदा था, जिस कारण उसका एक अन्य नाम 'हज़ार दीनारी' पड़ गया। नुसरत ख़ाँ ने मलिक काफ़ूर को ख़रीदकर 1298 ई. में गुजरात विजय से वापस जाने पर सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी के समक्ष तोहफ़े के रूप में प्रस्तुत किया। 1316 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफ़ूर ने सुल्तान के नाबालिग लड़के को सिंहासन पर बैठाकर राज्य की सम्पूर्ण शक्ति को अपने हाथ में केंद्रित कर लिया

2.हड़प्पा वासियों को  किसका ज्ञान नहीं था?
'हड़प्पा' पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित माण्टगोमरी ज़िले में रावी नदी के बायें तट पर स्थित पुरास्थल है। यहाँ पर 6:6 की दो पंक्तियों में निर्मित कुल बारह कक्षों वाले अन्नागार के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिनके आकार 50x20 मीटर और कुल क्षेत्रफल 2,745 वर्ग मीटर से अधिक हैं। हड़प्पा से प्राप्त अन्नागार नगरमढ़ी के बाहर रावी नदी के निकट स्थित थे। हड़प्पा के 'एफ' टीले में पकी हुई ईटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं। इन चबूतरों में ईटों को खड़े रूप में जोड़ा गया है। प्रत्येक चबूतरे का व्यास 3.20 मीटर है। हर चबूतरे में सम्भवतः ओखली लगाने के लिए छेद था। इन चबूतरों के छेदों में राख, जले हुए गेहूँ तथा जौ के दाने एवं भूसा के तिनके मिले है। 'मार्टीमर ह्रीलर' का अनुमान है कि इन चबूतरों का उपयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता रहा होगा

3.किस व्यक्ति को ‘बिना ताज का बादशाह’ कहा जाता है
'सुरेन्द्रनाथ बनर्जी' ने 'बंगाल विभाजन' का घोर विरोध किया था। विभाजन के विरोध में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने ज़बर्दस्त आंदोलन चलाया, जिससे वे बंगाल के निर्विवाद रूप से नेता मान लिये गये। वे बंगाल के बिना ताज़ के बादशाह कहलाने लगे थे।

4.हड़प्पा काल में ताँबे के रथ की खोज किस स्थान से हुई थी?
'दैमाबाद' महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में गोदावरी नदी की सहायक नदी प्रवरा की घाटी पर स्थित है। यह सिन्धु सभ्यता का अंतिम दक्षिणी स्थल है। दैमाबाद से उत्तर-हड़प्पा के बाद के ताम्रपाषाणयुगीन जीवन-यापन के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इस स्थान का इसलिए विशेष महत्त्व है, क्योंकि महाराष्ट्र के आद्य इतिहास सम्बन्धी जीवन-यापन का आधारभूत अनुक्रम यहीं से प्राप्त हुआ है। दैमाबाद में ताँबे की चार वस्तुएँ मिली हैं- 'रथ चलाते हुए मनुष्य', 'साँड़', 'गेंडे' और 'हाथी की आकृतियाँ', जिनमें प्रत्येक ठोस धातु की बनी हैं, इनका वजन कई किलो है।

5.महावीर स्वामी 'यती' कब कहलाए?
कलिंग नरेश की कन्या यशोदा से महावीर का विवाह हुआ था। किंतु 30 वर्ष की उम्र में ही अपने ज्येष्ठ बंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया। महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना ही केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की। आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है

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